मान्यताओं के अनुसार इस स्थल से होली की हुई शुरुआत।
मान्यताओं के अनुसार होली की शुरुआत पूर्णिया के बनमनखी अनुमंडल के धरहरा से हुई थी. ऐसी मान्यताएं है कि राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र विष्णुभक्त प्रह्लाद को मारने का कई बार प्रयास किया था. वही कई बार विफल होने के बाद राजा हिरण्यकश्यप ने की अपनी बहन होलिका को इस काम के लिए बुलाया, जिसे ब्रह्मा जी के द्वारा आग में नहीं जलने का वरदान प्राप्त था. होलिका ने भक्त प्रह्लाद को अपनी गोदी में बैठा कर अग्नि में प्रवेश किया जिससे वह धू-धूकर जल गयी और भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हो सका. तब से लेकर अब तक होली से पूर्व होलिका दहन किया जाता आ रहा है। बताया जाता रहा है कि होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता रहा है।
मान्यताओं के अनुसार होली की शुरुआत पूर्णिया के बनमनखी के धरहरा से ही हुई थी, ऐसी मान्यताएं है कि इसके पश्चात भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और खंभा फाड़कर प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु का वध किया. उसके बाद से ही देश में होलिका दहन की परंपरा आरंभ हुई. यहां प्रतिवर्ष सरकारी स्तर पर धूमधाम से होलिका दहन कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. धरहरा की इस धरती पर अभी भी कई ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं जो इस बाद की पुष्टि करते हैं कि नरसिंह अवतार यहीं पर हुआ था। और इसी जगह से होली की शुरुआत हुई थी।
डेस्क रिपोर्ट पब्लिक व्यू पूर्णिया


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